Posts

Showing posts from April, 2017
क्योंकि या तो तुम थी , या मैं   जब खो गया था ड्रेस से मैच पिन या एडमिट कार्ड परीक्षा वाले दिन   बैग की ज़िप फिर से हुयी थी ख़राब या मुझपर हावी था वक़्त का दवाब   या तो तुम थी , या मैं   तुमने देखा था और समझा था रंगों का था पागलपन मुझमे   हाथ पकड़ ले गयी मैंने सीखा और पाया नया अपनापन जिसमे   माँ तेरे बनने से मैंने ममता जानी मेरे ह्रदय के शूल   तेरे आंख का पानी     या तो तुम थी या मैं   फिर ऐसा अरसा कुछ निकला न तुमने जाना न मैंने सोचा   कैसे रेत से थे लम्हे निकल भागे मुठी से भाग खुद से रही थी दूर हो गयी तुझी से   धूल आईने से साफ़ करते एक दिन फिर तुमको देखा मेरे नैनों में खिंची थी तेरे अख़्शो की रेखा   फिर से एकबार हमने मिल के जग जीता थाम हाथ सं...
हम सुनाते हैं मुहब्बत उनको आ जाती है जम्हाइयां और कमबख्त दिल उनके सोते ही , बंद पलकों पे कशीदे लिखने बैठ जाता है
गहरी सी कोई बात चुभती सी कोई याद बरसते से कुछ लम्हे तरसते से कुछ जज़्बात यही तो बस , इकाई मेरे रूह के जमी होने की भूलती सी मैं अब , दुहाई तेरा मुझे यु , छोड़ दे जाने की एक ही तो है इश्क़ मेरा हो के तेरा क्या पाना क्या निभाना बस , बंद आंख में बसेरा
दिल को निचोड़ती हूँ तो टप टप गिरती है अभी भी फिर से उसे सीधा कर टांग आती हूँ बरामदे पे , की सूख ही जाए पर ये जिद्दी बादल बस बरसना ही जानते हैं
तुम शोर नहीं सिहरन से हो महकी महकी धड़कन से हो जब जब है टटोला तो पाया मैं , अब तुम सी और तुम भी मुझसे हो .
हरेक सिलवटो में दिल के बांध के अबतक   छिपा रखी है महक इसे ही ओढ़ के सोती हूँ सुलगती हैं रात भर ये चिंगारी , ये लहक
क्या था मेरा कसूर या था बस तेरा फ़तूर कुछ भी कर गुजरने का और हमारा बस देखना यूँ हक्के बक्के आखिर कबतक कोई झूठे ही दिल बहलाये रखे Sent from my iPhone ये शेर शायरी छोड़ झोंक चूल्हे में कलम न अल्फ़ाज़ काम देंगे न ये इश्क की नज़्म जो सुलग रही हो बेवजह वो आग खाक भर की इसने न चूल्हे जोड़े न कभी रौशनी की रेंगती ये कागज़ों पे साली जोंक ही तो हैं रहे दिमाग में या कलम पे खून चूसती भर हैं नोच फेकू खरोच फेकू सब बेहूदा जज़्बात घूम फिर के अटक जाते है एक नाम पे , हर बात
झूठ की अर्थी तो कबकी उठ गयी अब तो बस सच में कारोबार हुआ करते हैं एक सच कहने वाले और हज़ार छिपाने वाले
हम भी कुछ कर लेंगे एक दिन , जी लेंगे उम्मीद लेके ऐसी ही भागे जाते हैं दौड़े दौड़े जाते हैं किसीको नहीं पता इस अंधे कुए में कोई किसी की नहीं सुनता हाथ जो टकरा जाते हैं झटक के फिर बढ़ जाते है हम भी कुछ कर लेंगे एक दिन , फिर कभी जी लेंगे