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Showing posts from December, 2025

Three different worlds

"किसके इंतज़ार में बैठी हो" चौंक गयी, मीरा। उसकी तंद्रा भी टूटी। न जाने कब से बैठी है पार्क के इस बेंच पर , और उसकी आधी सिगरेट  घास में गिर कर कब की ठंढी हो गयी है. क्षितिज उसके पास ही बैठ गया. कोई कुछ नहीं कहता एक दूसरे को अगले कुछ पलों के लिए. फिर अपने आप पर जैसे काबू कर लेती है मीरा और तपक कर अपने अंदाज में बोल पड़ती है. "तुम्हारा तो बिलकुल भी नहीं" दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़ते हैं. क्षितिज भी जानता है , बस इतना सा ही रिश्ता है उसका मीरा से. मीरा न जाने कैसे एक अनजान सी दीवार में घेरे रखती है हमेशा आपने आपको और उसको फांदने की कोशिश भी पूर्णतया व्यर्थ है ये अब तक में क्षितिज जान गया है. मीरा ऑफिस की सबसे काबिल अफसरों में से एक है , क्षितिज जब आया था कंपनी में तो मीरा को शायद एक साल हो गए थे लेकिन एक ही साल में मीरा ने अपनी काफी धाक बना ली थी. क्षितिज अलग डिपार्टमेंट में है और अब तो काम के सिलसिले में कुछ भी वास्ता नहीं पड़ता मीरा से. शुरू में ही एक प्रोजेक्ट को लेकर उसने कुछ दिन मीरा के टीम के लोगो से बात की थी और भांप गया था उसके मन को. मीरा के पर्स...
एक दराज में पड़ा पुराना खत मैं हूँ देख ज़रा आईने में, आँखों में मैं हूँ  कभी छलकते हैं जो, नैनो से दिल के टुकड़े  देख सहेज उनको जो, शुकुन  का सच मैं हूँ  दूर सही मंजिल पर , रस्ते तो हैं  नमी निगाहो में फिर भी, हस्ते तो हैं  उजड़ा उजड़ा सा क्यों न हो चमन यहाँ  एक दूजे के दिलो में हम, बसते तो हैं  मेरे लबो पे लब तुम्हारे हो, तो क्या हो  तेरी मुहब्बत मेरी रगो में, बहे तो क्या हो  एक लब्ज कैद है अर्सो से , इज़हार का   कही परिंदा दिल से उड़ जाए, तो क्या हो  कह दिया करती हैं आँखे हाले  दिल  बस कोई पढ़ने को होना चाहिए  पुरे हो जाते हैं अरमा ख्वाब में  हर रात जी भर, इश्क, सोना चाहिए  हाँ हंसी हूँ मैं तो गुरुर क्यों न हो  है नशा ये इश्क का शुरुर क्यों न हो  जो नश्तर ही निगाहें और उनका दिल निशाने पर  खुदा खैर करे, फिर एक कसूर क्यों न हो  मुहब्बत है दीवानो सी तो कह देना था कभी  हाय ये इंतज़ार की उम्र  तेरी ख़ामोशी से लम्बी 
  जब तलक रूह है जिन्दा और साँसे बदन में  यु ही तनहा तड़पने की ज़रुरत क्या है  आजाऊंगी सजाके मैं मेहँदी, ओढ़े घूंघट  बस तुम कह दो, मिलने की मुहूरत क्या है  न चरागों से मांग कर रौशनी  एक अपना दिया जलाया होता  न उम्मीद उनसे प्यार की करते  खुद को सीने से लगाया होता  न बिखरते यु टूटकर के हम  न अँधेरे यूँ किस्मतो में होते  शुकूं से उम्र अपनी भी कटती  काश, दिल ही न लगाया होता 

Home

 When two humans can’t have enough of each other’s body, mind, and spirit… When two humans can’t stop nourishing each other’s body, mind, and spirit… When two humans begin to feel each other’s pain — in body, mind, and spirit — they know. This is it. This is home. We are home.

हाँ, तुम्ही को

 तुम  हाँ, तुम्ही को  और किसको?  और क्यों कहूँ  बस तुम जो समेट लो तो मैं हर बार बिखरूँ  चुन लो तुम मेरे आँसू  गिर जाने से पहले  तुम्हारे अनकहे दर्द  हम हथेली में भरले  और बहा आए गंगा में  की बस इतना ही था  किसी ना दिन हमको  भी तो मिलना भी था  और बननी थी ये कहानी  जिसमे आदि है ना अंत  बस तुम हो बस मैं हूँ मन में ख्वाहिशें अनंत  सब सौंप दूँ   जो समेट लो तुम  हाँ, तुम्ही को  और किसको?
 रिश्ता कुछ भी हो  उसका नाम हो या नहीं  वैसे भी वो सब  ज़माने के कायदे भर हैं  खोखले , बेवजह , बेबुनियाद  आज दिए और कल ले भी लिए. लेकिन वादा , अपना है  और मजबूत इरादा भी  की, खुशिया  आशाएं , सपने और भरोसे  बने रहे , न हो टस से मस  क्युकी, ये मेरे अपने है  आजाद बनावटी रिवाज़ो से  सगे , आत्मा की आवाजों से  सूरज की रौशनी सी नियमित  प्रकृति की नियमों में सीमित  प्रेम, का क्या है वो तो मिट्टी के माधो से भी होता है   पहले हम ढंग से करना तो सीख ले? एक बार कभी , मीरा बनकर तो देख ले  जरुरत, चाहती है - मांगती है  प्रेम, तो बस उमड़ पड़ता है  उझल देना चाहता है  और बिखर जाने में ही उसका निमित्त है  और कहीं कोई समेट ले  तो बस

तुम रोक लो

 यु ही बीत जाया करेंगी शामें  और शायद, जिंदगी की शाम भी  उस शाम भी  तुम कहना ,हम सुनेंगे  लेकिन सुन लो  सुबह कैसी भी हो  वो बस मेरी होगी जब मेरे इशारे का इंतज़ार  करता सूरज , वक़्त को रोके  देखा करेगा , तबतक जबतक  मैं न कहूँ , ये रात इतनी ही थी  हमारी बात , इतनी ही थी  और आते ही धूप परदो से  मैं चुप हो जाउंगी , की तुम रोक लो  मुझको कहना न पड़े, तुम रोक लो  और मैं फिर चुपचाप रुकी रहूँ  किसी दरवाजे की ओट में  और तुम बाते करते रहो  चाहे जितनी , शाम तक  उजालो की , ठहाकों को  समंदर की, किनारों की  और फिर ढलते ही शाम के  सौंप दो सारे अँधेरे की मैं   रोशन करू उनको कभी फूलों के पायल से   कभी नीले से काजल से  कभी एक लौ हो रोशन सी  कभी कोई दाग होठो की  कभी फिसलती सी उंगलिया  कभी उलझती सी बालिया  कभी सांसे बहकती हो  कभी धड़कन ठहरती हो  रोशन रहे बस रात  की मैं सुबह को  फिर चुप हो सकूं  इठलाते हुए  तुम से कहूँ  फिर र...