बादल कब से चाँद की सुनने लगे? जो कहने से तुम्हारे, वो बरस जाएँगे आज मुझपर वो तो उड़ते रहते हैं, हैं अपनी मर्ज़ी के मलिक घूमते हैं वो ठिठकते हैं तो बस पर्वत पर मैं हू ही कौन, एक नादान चकोर फैलाए आँखे देखती हूँ, बादल की बाहों मे तुमको छिपते पर जानती हू, जाएँगे उड़ वो अगले तेज़ झोके से रह जाओगे तुम, अनगिनत रातो मे शीतल नैनो से देखते है सच तो ये की शीतल हूँ मैं पर ह्रदय में ,ज्वालामुखी एक पलता है उन काली घनघोर बाहों में मेरा भी तो दम घुटता है आज गुज़रे , अब ना आयें हरपल यही मांगता हूँ बहुत सारे जतन करके अपने आपको रोकलेता हूँ कही किसी पल दिन कही ये धैर्य खोता सा जाता है तब ये शीतल चाँद दरिया में ज्वार लाता है
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Showing posts from September, 2015
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कहा कहा लिए जाये सपने, कौन जाने किस गली किस मोड़ से गुजारे ये जाने अनजाने चेहरे अनगिनत दिखलाये, मिलाये बिछड़े जहाँ न कोई अब किसी को पहचाने रखे घावों में मरहम, बनकर सगा कोई हमदम घुमाए फिराए, ले उंगली पकड़ गिरते ही पलकों के चले जाये, लिए जाये, डोर खिचे अंजानी फिर वापस कर जाये हकीकत में जीवन के सपने सपने एक तू ही मेरे अपने ले चल आज मुझको , मेरे साजन के घर को आज वापस न लाना , बस एक बार हमेशा के लिए, सो लेने दे मुझको
शब्द
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कितने खूबसूरत होते हैं ये शब्द और कितने भोले भले से बेचारे जब चाहे जैसे , इन्हे माला में पिरोलो बस भाषा ये बोलेंगे बस तुम्हारे दोष भी सीधा सीधा इन्ही को मिलेगा अगर नहीं व्यक्त कर पाएंगे ये सही से भावनाए तुम्हारी चाहे जैसे भी हो ज्ञान हीन हो भी तो, है कटुता इन्ही से हैं यही संग मेरे, जबसे मुझे याद है चले साथ साथ न मेरी राह काटी थामे मेरे मन की डोरी, बंधी हूँ मैं इनसे यही मेरे संगी यही जीवन साथी
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यु दिए जलाकर तुम मुझमे उम्मीदों के दहलीज पर ऐसे एड़ियो से उड़ेल जाओगे सोचा नहीं था पर था डर ये हरपल आखिर मुझसे नाचीज़ को कब तक अपनाओगे आग पकड़ ली है चौखटों ने घर की पर मैं यहाँ से नहीं हिलने वाली हो जाने दो भष्म मुझको , साथ सपनो के मेरे तुम पलट कर कहाँ अब इधर आने वाली बड़ी ढीठ हो तुम, है बड़ा गौरव तुमको की जिद के आगे तुम्हारे, जग टेकता है घुटने हो जाये अब शहीद इसमें इश्क़ भी हमारा शब्द ही बस बचे हैं, जज़्बात के क्या कहने
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उम्मीदों पे तुम्हारे हमेशा खरी मैं उतर पाऊँ ऐसा भला कैसे हो पायेगा, इंसान हूँ अपनी जगह ठीक हूँ, शायद कही गलत भी वार कभी सीधे, पड़ जाते हैं पलट भी माफ़ी की कोई जगह इसमें बचती नहीं है उधार के प्यार से, रिश्तो की नीव टिकती नहीं है जब जो चाहे देना , सर आँखों पर है हर करम अगर घाव तूने दिए है, रखेगा भी मरहम अगर सच था वो जो मेरे दिल ने पाया था तो आओगे तुम, वर्ना समझूंगी भरम
मुझे अब खोने का डर नही है
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मुझे अब खोने का डर नही है सूखे ताले जब नयनो के, रोने का डर नही जिस उम्मीद और ख़यालो से, बरसो महल बनाए उन सपनो का अब ग़लती से सच, होने का डर नही है क्या किस्मत और क्या होती हैं, हाथ की रेखाएँ तुम हाथ जो बस बढाओ , हम मंज़िलो को पा जाएँ पर ये हुआ नही, ना होगा कभी, तकदीर सदा से सोई ऐसी किस्मत कब सो जाए, सोने का डर नही है कदमी की आहटो पर, जहाँ साँसे रुकती और चलती थी एक सहमी सी झलक पर ही, धड़कने तेज़ हो जाती थी जब राह चुनी, इन हाथो से, मैने खुद रेगिस्तानो की काँटे कोई और क्यू कर, बोने का डर नही है मुझे अब खोने का डर नही है