এখন তো সময় আছে এখন কিসের তাডা এখন বলে রাখি যেসব ছিল বালার আমার কথার কলি তোমার চোখের হাসি স্বপ্নের আসা যাওয়া হওয়ার যেন ভাসি কল্পনার যে সেতু বেঁধে রেখেছে দুই ঘাট এমনি করে যদি জীবন কেটে যায় , কেটে যাক আর সূর্য আসবে না আর কাজ নাই কোনো বাকি রাত্রি কন্ঠে , শব্দ মিশিয়ে চোখে চোখে তোমায় রাখি
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Showing posts from October, 2016
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हवा तो बस एकबार चली थी जब तुमने कंधो पे सर रखा था और वो जुल्फ उडी थी हवा तो बस उसबार चली थी आसमान तो लाल एकबार हुआ था जब हथेलियों पे तेरे मेहँदी का रंग चढ़ा था और खुशबु से ये आंगन मदहोश हुआ था आस्मां लाल हाँ उसीबार हुआ था ढली थी धूप बस एक बार नज़रे झुकी थी और तुमने इकरार किया था जलती तपती धरती को तुम्हीने सुकून दिया था हाँ , बस एकबार ढली थी धूप
पगडंडिया
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पगडंडिया जाती है जो घर को मेरे कीचड़ से सनी काँटों से भरी तब पार कर आये थे हम यु कूद फाँद , लेके छलांग अब बस देख पाते हैं उस पार दूधिया चाँद कर के बंद आँखों को उतरती नसों में हैं हवा जो बहके आती है कहानिया सुनाती है शहनाई तो कभी ढोल खोलती हँसी की पोल छलकती है प्यालो से पलकों की , सब बेमोल अब ताकते है निराश नयन देते हैं विदा , अब हम कहाँ क्या पाएंगे न जाने क्यों आये थे न जाने , कब जायेंगे