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Showing posts from March, 2007

एक ही नाव के यात्री हम

एक ही नाव के यात्री हम तुम और मैं चले थे जब जब तो नही थी ख़बर की किन थपेडो मे हमारी नाव जाएगी अनजाने से एक दूसरे से बस हो गये सवार करके हवाले - अपना भविष्य इन मतवाली लेहेरो को कुछ दूर गये तो देखा कोई नाविक कही नही था घबराकर - करके समझौता हालातो से कभी तुमने कभी मैने स्महाली पटवार और कुछ दूर गये लेकिन फिर भी कही नही था कोई किनारा बस बढ़ते रहे और सिख लिया लेहेरो मे जीना लेहेरो के राही हम तुम और मैं एक ही नाव के यात्री हम तुम और मैं

हॊनॆ दॊ परिवर्तन‌

हॊनॆ दॊ प‌रिव‌र्त‌न‌ हॊ ही जायॆ अब‌ कितनॆ आयॆ और‌ गयॆ झुलसतॆ इन हालातॊ मॆ आखिर कब तक ऐसॆ चळेगा और कितनॆ यूगॊ करॆगा इन्त्ज़ार‌ अपना समाज‌ हॊनॆ दॊ प‌रिव‌र्त‌न‌ कीतनी सीता और कीतनी राधा बन्द् करॊ यॆ पॊथी पूरान मै नही कॊइ नाइका इन कहानीयॊ की लिख्नना है मुझकॊ खूद अब अपना इतीहास‌ चलो मुझॆ अब सॊचनॆ दॊ मॆरा भविस्य करॊ अब तुम इन्तॆज़ार‌ आनॆ का मॆरॆ और मॆरॆ फिर आनॆ का मैनॆ माप ळीया मेऱी जामीण् अब बस छूना है अस्मान बस‌ ऐसा भी नही कॆ ये कॊयि असान‌ रास्ता चुना है मैनॆ छॊड कर सारा समाज‌ हॊकर अकॆली और असुरखित मैनॆ थामी मशाल‌ बनकर मै मॆरा परिचय‌ बस अब‌ और नही हॊनॆ दॊ परिवर्तन‌

डर

डर के पैरो के नीचे से खिसक जाएगी ज़मीन हर पल ये डर के फटने वाला है आसमान टूटने वाला है वो पहाड़ जिसपे अबतक टिकाए थे सर हर पल ये डर की होने वाला है सामना एक नये हालात से जिसके लिए - नही है पूरी तैयारी चुप्पी - ख़ामोशी आने वाले तूफ़ान की आहट शांती - तूफ़ान से पहले की शांती धड़कता मेरा दिल सुनती इसकी आवाज़ सिर्फ़ मैं करती इंतज़ार सच होने का उस डर के जो अभी आया नही प्रार्थना हर पल..करता मेरा मान ख़ामोश चुपचाप की टाल जाए वो बाधाएं पर यह डर उस सच से कही ज़्यादा दरावाना ये डर कैसे करूँ मैं सामना हालात से शायद निबट भी लूँ लेकिन इस डर का क्या करूँ? रुकी हुई साँसे थमा हुआ पल पर बढ़ता पल-पल काले साये सा मेरे सामने मेरा डर

Sympathy or Love

They said "Love me for the Love" and not for the Reason That It hurts me "If you dont" But what if it doesnt hurt me "When I Dont" Should I stop Loving you? They will say "Yes Absolutely" But then it hurts me to see you hurt. Is it Sympathy or Love? That it hurts when you are hurt. Or Rather it is... Sympathy Of Love. Yes its not Sympathy or Love but Sympathy Of Love. Sympathy Of Love.

Who Am I?

Who am I? Ask yourself. Who am I? Now you will turn to me saying who are you? Who are you to order me what I should do and not? Let me tell you. I am one of you. Take me as your mirror image. Take me as a voice from your inside. Trust me once and ask yourself. Who am I? You are a human being for start who can talk listen judge and analyze. Then you are a tool for building relations with fellow human being. Then you are here to make others life easier-happier better. Then there is your family you were born with and then other you adopted. Then again there is one you gave birth to. Oh that is the most beautiful part. And then what about you that keeps you surviving. Lets you lead a decent life. At least from the outside. So Presicely... You are me and Me is you. We are all Same...Same human being. In different Circumstances thrown by nature. In different Stages Of Life decided by Biology. In different moods or swings decided by psyche. We are all Fellow Human Beings. Me and You. Now Will...

Sapne Sapne

Sapno ki jo baat kare tho, sapne tho bas sapne hai.. par itna bhi yaad rahe, ye sapne kab apne bas me haain.. ki ye bas apni aankh nahi jo band kiya aur dekh liya ki ye bas apni soch nahi ki chaah liya aur pa bhi liya Sapne tho bas sapne hain koun ye apne bas me hain Inki bhi hampe chalti hai jab aana ho aa jate hain kabhi kabhi ham kitna roke jane ko,gujar jaate hain jab nind khule tho sabera ho.. par usse apni raat bhali jab sapno ka basera ho.. par itna bhi yaad rahe ye sapne tho bas sapne hai koun se apne bas me hain Sapne wo beeta kal tho nahi jo ham fir se jeena chahte hain Sapne kahin wo kal tho nahi jise ham apna banana chahte hain sapne kahi wo ummid tho nahi ki ye hota tho kya hotha sapne kahin wo baat tho nahi jo hamne har sapne me dekha jo bhi ho jaisa bhi ho.. bas ik baat samjh me aati hai Sapne tho bas sapne hai ye koun se apne bas me hain

About You

Why is this dazed feeling..a feeling of being lost forgetting where and who am I? No jolt is strong enough - not even that strong cup of coffee and in this stark day , I am half asleep when i am thinking about you. I feel I just stepped out of that door, the door we closed as we went inside and tranformed ourselves into one but now as I look back no house no door just sky above my head and earth under my feet I still want to hide myself in those arms ...and that chest.. bury my face there for ever Its cold out here I m dazed again... what force would that be that will tell me open your eyes and look around , you are not what you imagine youself to be truth ..reality...

I want to Run

When I get up and Frown - Why Dont I have the Luxury to Sleep Longer. And As I brush ,with my barely opne eyes. I curse - the clock , That never stops ticking. And there are still 3 more days left for the weekend. Then Somehow I drag myself - Mechanically to the kitchen Put the tea - I wont drink. Pack the Lunch - I wont eat. Get ready & Leave. Leave the house and sorrows behind. I try my best not to carry my burden of guilt with me. But it comes with me as a shadow. Following me - Reight behind me. Whispering constantly in my ears, The things I said and I shouldnt have said. The things I did and i souldnt have done. Also those thing I should have done - And I did not or could not. NO NO COULD NOT. I DID NOT!!!I DID NOT!!I WILLINGLY DID NOT. This is how - I pick up the pace. My mind starts racing...Somehow I could get away from this. Go somehwere-Somewhere new. A place - Where I can start a Fresh. RUN - RUN - RUN.GET AWAY!!! I miss to se things happening around me. People think - I...

Hindi hai ham

हिन्द दॆश् कॆ निवासी सभी जन् ऎक् है रङ्ग् रूप् वॆश् भाशा चाहॆ अनॆक् है

प्राकृति की विडंबना

कुछ है कही ख़ाली सा सबकुछ होकर भी कुछ तो है जो नही मिला - कुछ है जो पा सकते थे कुछ तो जिसके पाने से हो जाती आशाए पूरी भर जाती जाती की उम्मीदें एही सोच कर मान ने हमे मान को हमने रखा उदास कितनी वो ख़ूबसूरत सुबहे हमने ना देखा उगते सूरज को ना ही देखे उसके बिखरे रंग आशमान मे साँझ पहर ना देखा कब कोपले उगी , कब फूल खिले कब रंग बदले पत्तो ने और बिखर गये फिर आने को अपनी आँखो को बंद किए हम सोचते रहे कितना ख़ाली है मान का आँगन फिर राते घिरी तारे भी आए वो टीम टीम करते जागे सारी रात इस उम्मीद से की कभी तो बदलेगा मौसम मेरे मान का मयुश लौट गये वो भी देकर ये काम सूरज को लेकिन दिनकर भी खोल ना सके मेरी आँखो करके अनदेखा वो सब कुछ जो मिल सकता था जिसमे थे जीवन के अर्थ जिनसे मिलती उम्मिदे आगे बढ़ने की यह मानव प्राकृति की विडंबना देखिए खोते आए हैं हम सदा से उन अनगिनत महत्वपूर्ण लम्हो को जिनमे हमको जीना था चलो आज तो खोले अपनी आँखे देखे समझे और पाए वो जो हमे पाया है हाँ हमने बहुत कुछ पाया है ख़ुद समझाए कितना तो पाया है

A Bad Joke

A Bad Joke When we met , We dint know what destiny had in store We just met like I get hold of a book We enjoyed everybit of our togetherness Just the togetherness. Like reading it - silently,away from everybody quitely while lying on a bed. Tucked nicely in the dim light. We kept enjoying-Me and My book. Oh that was funny and that was so interesting. That part - There , on that page. and then the urge the fire inside , our conscince Plays some role. Starts arguing. Right and Wrong??For how Long?? I have to get over it-Go away..where to?? What that means-and what this doesnt. Well - too many questions. unanswered - most of them. As I cant master enough guts to answer those. Neither the book-It says whats written by the author. Who no longer exists. Answer is inside - Me and You. What a prank destiny played on me. A bad Joke - thats what it was. between you and me.

Shayari - Gazal (Whatever it sounds like)

लग कर गले तुम्हारे कर ली हर आरज़ू पूरी ग़म है तो बस इतना की उन बाहों मे ना मर सके हम ख्वाब था वो पल भर का - अब बन गया है सबकुछ कहने को हम नही थे पर अगर कभी थे तो हम वही थे शिकवा नही है हमको की दूर हो गये हम कम्बख़त हमारा दिल ये उस पल मे थम गया बस आगे निकल गये तुम-छीनकर हमारी साँसे ये जिस्म रह गया है - वो भी नही हमारा हमने तो बस जिया है - उस एक पल को जी भर के जब बाहों मे थे हम तुम्हारे और हमारी सांसो मे थे तुम...सिर्फ़ तुम!

Man Ka Kamra (The Sacred Corner of my Heart)

मैं और मेरी तन्हाइयो की दुनिया हसीन लाजवाब-बस मेरे ख्वाब और ख़यालातो की दुनिया जैसे की एक बंद कमरा उँची छतो वाला. साफ़ ठंढी उजली फ़र्श और सिर्फ़ एक खिड़की जिसमे से हर वक़्त आती हो बस छनती धूप.सुबह हो या रात सूरज की वो एक किरण,ठीक उसी तरह आती रहती हो जैसे और उसमे मैं एक-तन्हा देखूओं चारो ओर दिखे बस एक दीवार बस उतनी ही हो मेरी दुनिया ना सुन सकू मैं कोई और आवाज़ सिर्फ़ ख़ुद को सुन सकूँ काई लबज़ो मे बटूँ अपने घम और खुशियाँ मैं बस ख़ुद से ख़ुद ही सुलझाऊ अपने मन की उलझन कह दूं हर वो बात जिसको कहने से पहले ना सोचू की क्या बनकर ये सब्ड़ हथियार गिरेगा फिर मुझपर धुएँ से उड़ जाएँ मेरे अपराधहबोध एक छोटे बच्चे सा साफ़ निश्चल मन लेकेर मैं आऊँ बाहर अपने मन के कमरे से और भूल जाऊ वो सब ज़ो छ्छोड़ के आई ऊन बंद दीवारो मे जबतक फिर भर जाए मेरा मन और छ्छलक आए मेरी आँखे तरस जाए मेरी रूह सुनने को किसी अपने की आवाज़ की कही है ही नही है तो बस मेरे मन के बंद कमरे मे. जहाँ मैं हूँ और है मेरे गूँजती तन्हाइयाँ

Badal - The CLouds

बरसा फिर बादल ज़ोरो से और बहा ले गया वो सब कुछ जिसको कहने को कब से था मन मेरा बेहाल कहने को थी बेचैन मेरी ज़ुबान वो दास्तान - था मन पर मेरे बोझ अच्छा हुआ अब छूटी ये जान वरना किसको किसको समझते फिरते की क्या है ये जिसको द्धोते चलते फिरते थे हम अपने साथ साथ लटकाए चेहरा बचते बचाते -छुपते छिपाते आज आख़िर बह गया सब इस बरसात मे अब कुछ नही कहने को सुनने को ऐसा नही की हमको कोई ग़म नही उसकी भी अब आदत सी हो चली थी पर जाने दो हम जी लेंगे बह जाने दो उसको जिसको हमने टाँग रखा था अपने साथ आज़ाद किया जाओ तुम भी..बहो अपने जीवन की धार मे बरसे बदल आज..और बिजली सी भी गिरी

Kehna sunana

ऐसी भी क्या बात थी की केह ना सके हमसे क्या होता जो केह भी देते डर था? इस बात का की दूर चले जाएँगे हम वो तो देखो हम आ ही चुके हैं क्या हो जाता - केह भी देते सुन भी लेते कहने को शायद हमने भी कुछ सोचा होगा ये ना सोचा? बस सोचा अपना अपना..मेरा क्या? समझाओ मुझको क्यू ?

Shabd(A poem About Words we say with lost emotions)

शब्द , शब्द शब्द शब्डो के जाल मे उलझे उलझे हम सब देखकर उन सबको मुश्किल समझना कौन सा था सवाल और कौन सा जवाब ? किस बात का कौन सा था जवाब ? भूली बिसरी बाते कहने की - सुनने की ? अनकही और अनसुनी.. ऐसी बाते जिसको कहने की कोई वजह नही शायद ना उनको सुनकर मिलने वाला सुकून ये शब्डो के ब्स मकद जाल और इनमे उलझे मान के वो बाते जिनको कहनी की कोशिश थी जो बात किसी ने कही नही जो बात किसी को सुननी थी-पर सुनी नही कहने वाली - सुनने वाली कितनी बाते पास सारी की सारी बाते उलझी उलझी शब्डो मे कुछ सोच नही पति मैं वो रा ह कोई की लोग कहे और सुने वही की कहा-सुनी ना हो हम समझे बाते अपनी और उनके मन की वो बाते जिनका कोई अर्थ है ना की वो बाते जो बाते ही नही है शब्डो के जाल.