कहानी
Open Book (60/365+1) Originally uploaded by thinklia कहानी मेरे पास एक कहानी है, जो सबको मुझे बतानी है ना राजा की ना परियो ना, ना भूत प्रेत और सदियो की कथा है हम जैसे पागलो की, इन हाड़ माँस के पुतलो की जो सुनते हैं और देखते है, जिनके दर्द मे आंसू बहते हैं जिनकी रगो मे बेहेता है एक जैसा खून पेशानी पे चमकती है मेहनत की बूँद बात ये कुछ नयी नही, तुम सोचोगे फिर मैं क्यू सुनू क्यूकी ये बात तुम्हारी है, तुम चाहोगे बस वो ही सुनू एक बच्चा था, तुम जैसे थे एक दिन, जिसकी आँखो मे सपने थे जिसकी बातो मे जादू था, जिसके उंगली मे बिजली थी जिसके मन मे अरमान थे और डिब्बे मे बंद तितली थी बात ऐसे भी पुरानी नही की तुमको याद नही होगा जाओ ढुंढ़ो उस किताब मे , एक मे सूखा लाल गुलाब होगा क्यू रखा था, संहाल कर इतना, इक छोटी सी तो निशानी थी वो ना मिला जिसको पाने की, तुमने मन मे तुमने ठानी थी कैसी ज़िद थी, ज़िद थी भी या नही? ज़िद जो थी, तो पूरी क्यू ना हुई? क्यू बुझी आग, क्यू सोए भाग, क्यू छोड़ दिया उम्मीद ने साथ? यहाँ तक की बात थी सबको पता, पर फिर क्या अब ये तो सुनो लेकर वो फूल , और लेकर ये ज़िद, तुम जैसा ही वो, प