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Showing posts from February, 2019
एक आंच ही तो है धीमी धीमी सी  एक जलन ही तो  मीठी ठीक सी  घुलते जाते हैं  अरमां ख्वाब और वजूद जिंदगी हो जाती है मीठी चासनी सी 

From one empty space to another.

From life to death and then to life. Probably. Yes, aren’t we all ultimately made up of about 99.9999999999996% of empty space? For all who know what I am talking about, can skip to next paragraph. For rest, please hang tight. So, human body as we know including all the organs and variety of tissues that built them up are made up of cells. Cell then if broken down further shows the DNA’s ..Carrying Genes and ultimately atom. Now atoms, as every atom in universe is made up of proton, neutron and electrons. Proton and neutron sit tight in the nucleus while electrons keeps spinning around. Electrons, pretty much has no mass and guess how much of empty space is there in each atom? Yes 99.9999999999996%. That’s it, every cell of our entire body…..mostly empty. The living, in this body is like knowing and managing all these empty space which works together in perfect harmony crating a visible mass which is portrayed as “you’ an individual. Isn’t it amazing how all this empty space toge...
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बर्फीले रेगिस्तानों में भी कभी बसंत तो आएगा पिघलेगी चट्टानें सर्द सूरज गर्मी बरसायेगा  मंजर मंजर हर डाली फिर कोयल कोयल बोलेगी  खोल ह्रदय के दरवाजे  प्रकृति प्रेम में डोलेगी  इंतजार में बैठे बीज  पनपेंगे और बढ़ेंगे भी  खुलेगी कोपल कली कली के खुशबु से महकेंगे भी
एक लम्बी कहानी और एक किस्सा किताबी सा एक रात तनछुई सी और एक चाँद नवाबी सा जहाँ जब सो जाये, वो बरसाता रात पे अपना नूर हौले से बढ़ती, और सोखती, रात बड़ी मगरूर चाँद बलाये ले ले घटता बढ़ता रहे कही यु ठिठका सा काली रात घनेरी , थिरके लगा चाँद का चस्का सा रात तुझे तो जाना होगा , दिन धरती को प्यारा जो चाँद मिन्नतें कर थक हारा, सूरज से बेचारा वो रवां इश्क़  ये जवां इश्क़, है रात चाँद तेरा साथी टुक टुक ताके बैठे तारे, बनेगे कब ये बाराती Happy Valentine’s Day ❤️
जब से जन्म होता है, तभी से शुरू हो जाती है मृत्यु की प्रतीक्षा भी और इस अंतराल में जो समय हमारे हाथो में होता है वही कहलाता है जीवन।  मनुष्य को और कई प्राणियों की तुलना में, कई सारे अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध है। एक तो बुद्धि, दूसरा अंगूठा और तीसरा , मजह वक़्त।  सोचते सोचते नेहा की आँख लग जाती है। नींद है ये या सिरिंज से निरंतर धमनियों में टपकती औषदि का असर, कौन जाने। नेहा जानती है की अब मृत्यु ज्यादा दूर नहीं। जीवन का बड़ा हिस्सा इसने मृत्यु की अपेक्षा में ही बिताया है। कभी कुछ तो कभी कुछ। अपनी जड़ो से उजड़ कर, दूर देश में बस गयी थी छोटी सी उम्र में। सामाजिक तौर तरीके से बिवाह के बंधन में , वैसे ही जैसा अपेक्षित था।  बहुत कुछ वैसा हुआ जैसे सोचा था, लेकिन सबकुछ कहाँ होता है। इसलिए नहीं की इंसान अफ़सोस करे, इसलिए नहीं होता ताकि मनुष्य नए पथ प्रसस्त कर सके। जरा चौंके अनअपेक्षित से और बहता रहे यु ही, जन्म से मृत्यु के प्रवाह में।  नेहा को अपने हाथो में कुछ गर्मी महसूस होती है और एक परिचित सा सम्बोधन कुछ चौंका सा देता है। नेह ? नेहा को कुछ ध्यान नहीं ...

रोग

रोग ही तो है।की बंद आँखों के पीछे, खुद ही खुद को छलता है मन।  हाँ हमारा अपना ही मन।सपनो को ढाल बनाकर हर रोज़, खड़ा हो जाता है हमारे सामने। हर सुबह। और हमारे हाथ में होती है डर, शर्म , क्रोध, क्षोभ के भाले। निशाने पे हमें रखता है मन और हमें लगता है, अब हुआ की तब हुआ हमला। हवा के झोके , पत्तो की सरसराहट, काना फुंसी, यदा कदा कुछ भी जैसे हमें अंदर तक भयभीत कर जाते हैं। सहमे और डरे से आतंक में होते हैं हम हमेशा। और फिर, वो एक बात जैसे युद्ध का आवाहन सा बन जाता है और घबराहट में हम आंखे मूंदे हुए अंधाधुंध चलाते है अपने हथियार। एक एक करके सारे सपने, अरमा होते है ख़तम  और उनके साथ मर रहे होते हैं धीरे धीरे हम। पता भी नहीं चलता। दोष किसका ? अपराधी कौन? जान तो गयी है, मौत तो हुयी है पर खून बहा किसका? कौन करे इलाज़? कौन पता करे की आखिर जीता कौन और हारा कौन? कोई नहीं।  कब तक लड़े ये लड़ाई, अपने आप से। ये तो जैसे रक्तबीज सा है , नए नए बहाने बनाकर आजाता और हम फिर उठालेते हैं हथियार, अनायास ही।गला भर आता है मेरा जब देखती हूँ छतविछत देह अपने ही नन्हे सपनो की। ये भरोसा करते थ...
हाँ, अब मेरा देश  यही है.  आखिरकार मैंने लकीरों के आगे घुटने टेक दिए और अपनी सरहदें बना ली. कितनी बार आख़िर मेरे बचपन दोस्त, पडोसी और घरवाले तक मुझे समझाते रहेंगे की "तुम क्या जानो, तुम यहाँ नहीं रहती". हाँ, अब मेरा देश  यही है. 
जो ह्रदय छलनी  हुआ है  अग्नि की बौछार से  वो ह्रदय भी  सेंकता था  सर्दिया, अंगार से  जो ह्रदय होकर के पथ्थर  फूंक आया जिंदगी  वो भी कभी फट पड़ा था  रुदन की पुकार पे  तेरा ह्रदय मेरा ह्रदय  तेरा रुधिर मेरा रुधिर  एक जैसी धमनियाँ हैं  एक जैसी है गति  प्रेम और सन्मान की  कर लड़ाई स्वयं से  कभी नहीं बसा चमन  कही घोंसले उजाड़ के   हम खिलौने से न जाने  किसकी कठपुतली बने हैं   मन के  सन्नाटो से पूछो  शोर ये किसके भरे हैं  जिंदगी है तो  हसीं है  ये नहीं तो कुछ नहीं  जिसने खोयी वो ही जाने  कितनी जी थी, या नहीं  गुजर जाती है अँधियाँ  छोड़ कर उजड़े चमन  बन बहो ठंढी बयारें  इस धरा से उस गगन 
हमें करनी थी मुहब्बत मिले जज़्बात ख़ुदाया उफ़ ये वफ़ा की सिद्दत क्या हालात ख़ुदाया निगाहें  यार की पनाह   ताउम्र, गुमराह  ख़ुदाया हमीं इश्क़ तुम्हीं इश्क़ जहाँ, ख़ाक ख़ुदाया 
खो गए थे सुर साथ मिल गए बिछड़े सारे लमहात मिल गए मीठे मीठे हर पल हैं अब दबी हँसी होंठों पे हर पल बदरंगे मन हो रखे थे रंगो के सौग़ात मिल गए पूरे हुए अनदेखे सपने वो जो थे, थे मेरे अपने बिन माँगे बिन बोले देखो जीवन में सौग़ात मिल गए
परम्पराये, कैसे हिस्सा बन जाया करती है हमारे होने न होने का. जैसे लहू में घुल कर बहने लगती  धमनियो में और धड़काने लगती है ह्रदय। बेड़िया नहीं बल्कि आजाद करने की अनुमति देती हैं  भावनाओ को. खुल कर जी लेने के कायदे  सिखाती हैं कभी कभी और अपने पहचान से हमको मिलती है, हमारी परम्पराये।

December 25, 2018

माधवी, यही तो नाम बयाता  था उसने. दिमाग में सोचते हुए गाड़ी को घर की  तरफ घुमाया। मेरा  छोटा बेटा किंडरगार्टन  में हैं. आज उसे  स्कूल से  लेने गयी तो किसी ने पीछे से पुकारा. यू आर प्रोकेट मॉम ? आवाज़ सुनकर पलटी तो चौंक गयी.  मेरी उम्मीद से थोड़ी अलग एक इंडियन माँ अपनी एक मीठी सी मुस्कान  लिए मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थी. यस. एंड? ओह, आई एम् रॉकी मॉम.माधवी।  ही वास् टॉकिंग अबाउट प्रोकेट। सेम क्लास।  दे लाइक टू प्ले टुगेदर। उसकी एक्सेंट से उसका रंग मेल  नहीं खा रहा था पर उसकी आँखों की सचाई साफ़ चेहरे पे झलक रही थी. बस कुछ ऐसे ही  मिले थे हम पहली बार. पता चला वो पास ही रहती है और उसकी जिंदगी बस अपने बच्चो और पति के ही इर्द गिर्द  ही घुमा करती है. फिर  मिलना जुलना  लगा रहा, छोटा सा  है ये हमारा शहर . कभी कोई  सोच  भी नहीं पाता की यहाँ कुछ खो भी सकता है. यूँ ही, कभी स्काउट की मीटिंग तो कभी कुंमोन की क्लास के बाहर। अपने कलेजे के टुकड़े, बिटिया गिन्नी को लिए यदा कदा टकराया करती थी वो...
एक लम्बी कहानी और एक किस्सा किताबी सा एक रात तनछुई सी और एक चाँद नवाबी सा जहाँ जब सो जाये, वो बरसाता रात पे अपना नूर हौले से बढ़ती, और सोखती, रात बड़ी मगरूर चाँद बलाये ले ले घटता बढ़ता रहे कही यु ठिठका सा काली रात घनेरी , थिरके लगा चाँद का चस्का सा रात तुझे तो जाना होगा , दिन धरती को प्यारा जो चाँद मिन्नतें कर थक हारा, सूरज से बेचारा वो रवां इश्क़  ये जवां इश्क़, है रात चाँद तेरा साथी टुक टुक ताके बैठे तारे, बनेगे कब ये बाराती
चलो रिश्ते निभाते है खरी खोटी सुनाते हैं मुहब्बत तंग गलियों में हुआ आबाद करती हैं पकड़कर उंगलियां बीते जमाने याद करते हैं

This Valentine’s Day

Love Let me ask you first…When you love, rather when you are in love, do you wonder a lot about “where this love is going to take me”? Or, things such as how long will this love last? Or how much more fulfilling can this love feel? If you said yes…I feel very sorry for you. And in case you said no, you are either lying as instructed by your brain or you are sheer god! Brain…The evil thing that one is and thoughts that are nothing but a very demanding clamoring offspring of the brain. Each thought, the unruly colic wailing whining baby who doesn’t know when to stop, feeding on our constant attention. It keeps going on and on. Back to the main topic…so when in love. Why can’t you just “be” in love? Why don't we just fall and then sail on ‘in love’. Riding the waves, enjoying the ride just going with it. Living with it, as the heart desires. The heart, on the other hand, knows nothing, does nothing but beats. Very stupid, rudimentary basic action…almost like basic drumming, yea...

Message to One mother from another

Mom, I know you love me a lot And I love you too But can I ask you to love be a little less Just a wee bit Especially when you push away your lunch Until your bread is almost dry And coax me to eat one more bite, you Try I see your tired eyes scanning through Every website, for a ‘perfect’ parenting ‘Perfect environment’ ‘perfect schools Perfect neighborhood and perfect living Although you are the only perfection That I will ever know Its ok of I am not the right percentile On growth or any of those dummy charts Those are only scribble of lines But those that appear on your forehead Are not… Let me suffer with some of those grades  Crumpled shirt, dirty room or unkempt hair Forgotten lunches or not so great friends Home works lost or not wearing sweaters There is no damage your hug cannot fix Today or tomorrow, let’s not get them mixed. Don’t you ever bother, on what people will think? I will always love you, so let the idea sink. ...