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Showing posts from April, 2020

तू लौंग मैं इलायची, तेरे पीछे हाँ जी हाँ जी

तू लौंग मैं इलायची, तेरे पीछे हाँ जी हाँ जी  ये क्या गाना है भला? लौंग इलायची ही बनना था तो इंसान क्यों हुए? और अब जब इंसान हो तो लौंग इलायची बन जाने का शौक? ये तो हद ही है न. आखिर क्या औकात है लौंग इलायची की? किसी खेतों पहाड़ो में उगो, छटो , पिटो और हज़ार ट्रांसपोर्ट के लिए थैली या डब्बो में  बंद हो जाओ. उसके बाद भी यंत्रणा ख़तम नहीं होती. क्यों? अरे क्युकी इनमे खुशबु जो है. खास जो हैं. ख़ास होना ही तो सबसे बड़ी बला है. हाँ , तो मैं बता रही थी की इसके बाद इनके साथ और क्या क्या होता है.  अब ये घरों में पहुंचेंगे, बरनियो में भरे जायेंगे और कभी चाय तो कभी खीर में उबलने के लिए कूटे जायेंगे.  जी. उबालने से पहले इन्हे न कुटो तो खुशबु कहाँ आती है पूरी. उसके बाद, अहा. आंखे बंद करके भी पुरे घर मोहल्ले को पता चल जायेगा इनके होने और न होने का.  अब इसमें किसका दोष? किसका नुक्सान? फायदा तो सरासर इंसानो का ही है लेकिन. क्यों न हो, शौकीन है हम और साथ में अंगूठे वाली एकलौती नस्ल. आजतक अपने जीवन को और सुन्दर, और भरपूर, और आसान , और लम्बा बनाने का अलावा हमने और किया क्या है?  यहाँ डयनसोर न ट
खुद से हमारी भले ठनी रही दुनिया की रस्मे बखूबी निभाई है मुहब्बत की, तो हमने टूटकर उनसे वो अपना दिल था, जिससे बेवफाई है
बड़ा कहते थे , न होंगे नामो निशाँ मेरे ताउम्र पड़े है, बस यादों के दरमियाँ तेरे न अँधिया चली, न कोई बिजली गिरी कब और कैसे जाने उजड़े, आशियाँ मेरे
प्यार करते है ,तो काहे नहीं बोलेंगे? ये तो कोई चोरी डकैती नहीं दिल है हमारा, सोचते है सौंप दे याद रहे उधार है, कोई बपौती नहीं
देखते नहीं हो का बे? मुंह फुला के जो ऐसे चले जा रहे हो बावरे, ये जो सर में धुनकी है हमीं हैं, जिसकी माला जापे जा रहे हो
झूठ्ठो मुठ्ठो का प्रेम हमसे न होगा समझ के रखिये, अभी से कह रहे हैं सोलह आना निभाएंगे? तो पक्की करे वरना बहुतेरे है, जो हमें कब से सह रहे हैं
सुबह से आज मिजाज थोड़ा  गड़बड़ा गया है उ कहें हैं आएंगे मन घड़बड़ा गया है कभी काजर कभी टिकली कभी हम केश सवारे ऐना भी आज समझो एकदम चरफरा गया है
मिलकर जो उनसे, हम वापस घर आये चेहरा हमारा जैसे कुच्छो भी कह रहा था कभी हँसे ,कभी शरमाये ,और हद तो ये की नाम से ही, टुस्स लाल हो गया था अब कहो कैसे, ऐसे ऐसे हाल बेहाल छिपेंगे भन्साघर से अंगना तक, प्रेम महक रहा था
बहुत आंसू बहाये थे तुम, हम क्या देखे नहीं प्रेम बहुते पढ़ाये तुम, पर हम सीखे नहीं कितना पहर, दोपहर, छत के कोने से झांके और जब नजर मिल गयी, हम ही टोके नहीं जिस दिन निकल पड़े थे, सब छोड़ छाड़ के चाहे थे पकड़ के मेरा हाथ रोक लो , रोके नहीं तब तो रोके नहीं
कह गए हैं बड़े बुजुर्ग इहाँ सब धरले रह जायेगा अबके सावन भी न बरसे त शोख रहले रह जायेगा उम्र बीतेगी और सारा सपना नोर के संग, बहले बह जायेगा
बड़ा नखरा करती हो , खौँझाके कल कह रहे थे अभी तो शुरुआत भी नहीं, सोच के मुसक रहे थे देखते जाईये , कितना और अभी एग्ज़ाम होगा ये प्रेम है प्रेम,इसको क्या हलुआ समझ रहे थे ?
एक बार ढंग से जो हम केश सवारे मोहल्ला में नींद सबका हराम होगया सोचते है , कही जो गजरा भी डाल ले पूरा शहरे में , कौनो  कोहराम हो गया
लोगो को क्या और कितना चखना है बहुत अच्छी तरह पहचानती हूँ तभी तो नाप तौल कर हिसाब से ठीक उतने ही एहसास परोसती हूँ सजाकर चमचमाई हुयी परात में बरनियो में भरकर रखती हूँ मीठी हंसी और नमक के आंसू और तानों के कुछ तीखे मिर्च किचन बड़े सलीके से चलाती  हूँ With हर मसाले हैं , उम्दा किस्म के
आजकल तो इश्क एक तस्वीर से होता है और दूसरे तस्वीर से ख़तम वो ज़माने गए की बारिश, बादलो और चाँद में माशूक़  होता था कम्बख़्त, मज़ाल है की जीतेजी निज़ात मिले
तसब्बुर में तुम्हारे , जी सुबह से शाम करती हूँ यादों की, इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का अब काम करती हूँ न लत लग जाए, बस तेरे एहसासों से मुहब्बत की कही दिख जाओ और न पहचानूँ, यह सोच डरती हूँ
काली रातों में बदरिया भी ढाँप सोई है चंदनिया री टिमटिमाते है तारे या जुगनू रौशनी है खलबलायी सी धक् से जी ये डोल उठता है हाय तुम क्या द्वार आये हो या फिर से ये कोई छलावा है नैया मेरी मझधार लाये हो?
प्यास गले में रुकी रहे जीने को इतना काफ़ी है एक घूँट में कहीं बुझा दे बड़ा बेरहम साकी है पीकर हम तेरी आँखों से बेसुध बहके डोलेंगे कही गिर गए जो बाहों में राज़ अनकहे खोलेंगे इश्क़ सलामत रहे भले ये धीरे धीरे क़तल करे जिस्म ख़ाक पर रूहें अपनी तरन्नुमों में वसल करे
इक मोड़ पर जिंदगी मिली और फिर खो सी गयी लेकिन मिले थे तो, नजरें भी मिली थी और धड़का था ये दिल, कुछ जोर से चौंक उठी थी दिशाए, कांप उठे थे ऊंघते से ख्वाब, उसके शोर से यूं लगा था, अब कहाँ जायेंगे, क्यों जायेंगे सबकुछ छोड़कर, इस बला के खूबसूरत मोड़ से जिंदगी है , बेवफा , वो रूठ करके बढ़ गया भूल कर के वादे, मेरा इश्क़ शूली चढ़ गया अब भी क्यों, यादें टपकती आती है तेज़ाब सी हम तो घसीटे जा रहे थे, लाश अपने ख्वाब की
हमसे भुलाई न गयी उनसे बेवफ़ाई न गयी बात तो शर्तों की थी दोनों से निभाई न गयी तय था की न वादे न होंगे दिलों के सौदे जानकार भी मिट गए हम उनके सारे इरादे मैं एक ऐसी माशूका जिसका न आशिक़ कहीं खुद शम्मा और पारवाने न जली, तो बुझी भी नहीं
मुहब्बत न सही , ख़ैरियत तो पूछ ही सकते थे क़रीबी भले न सही, पर तकल्लुफ़ के तो रिश्ते थे
कमसिन है वो क़ातिल बड़ा मासूम सा ज़हर जबसे उसकी गली घूमी पराया हुआ शहर न देखता है वो पलट के न कभी पूछता है हाल करूँ तो करूँ अब क्या हरेक सवाल,बस सवाल अंधियो सा वो आया चला गया बवंडरों सा तिनको से हम उड़े थे बेग़ैरत, निकला दूसरों सा ख़ुदा ख़ैर करे तेरी हर दुआ में तू हो शामिल तेरे दिल को वो सुकूं दे जो अब हमको नहीं हासिल शिकायत भी तुम्ही से तुम्ही से है मुहब्बत भी परवाह भी है तुम्हारी और तुमसे ग़फ़लत भी
टूट टूट, कई बार जब जुड़ता है ऐसे ही, दिल तो मजबूत होता है कसक हर दरारों से जब झांकती है हवा तभी तो इश्क से महकाती है न होता है किसी आशिक का इंतज़ार माशूक़ा, ख़ुद पे हो मग़रूर, इतराती है बहने लगता है रगों में जब और धड़कता है इश्क वाला लव, तब जाके कहीं होता है
शुक्रिया उन राहगीरों का जो राह में मिले पर साथ न हुए हम सफर में रहे और वो हमसफ़र न हुए
आज झरोखों से झांकती चांदनी खोजती है कहाँ है वो आंखे जो शाम से आस्मां को ताकती है कही उसने उम्मीदों को भी उसीमे तो न बहाया जो नदी वो आँखे छिप छिप के बहाती है मायूस चाँद पूछ रहा है और है चांदनी चुपचाप क्या ऐसे ही बुझ जायेंगे खिड़कियों पे रखे चिराग़ हूँ मजबूर, की मैं भी बस रात का  मुसाफिर न जाने सूरज दिन भर इन्हे, कितना जलाता है
ऊंचा दरख़्त हैं तो टिके रहिये झंझावातो से अभी जूझिये टूटने की बात अभी रहने दो सूख जाने की? बस कहने को चिलचिलाती घूप हो, बारिशें नदारत तुमको तो बढ़ना है यही है तुम्हारी किस्मत नहीं करते तुम अफ़सोस एक शाख टूट जाने की नहीं बहा सकते आंसू मौसमो के रूठ जाने की आपकी शाखों पर अभी घोंसले बनेंगे छाया में कितने ही थककर , बैठेंगे बनेंगे कितने किस्से और तुम्हें डटकर देखना है युगों युगों तक तुम्हे ये जंगल सींचना है 
तिरस्कार प्रेम और आकर्षण से सराबोर ह्रदय लेकर, आयी थी तेरे द्वार पट जरा विलंब से खुले, और सामने तुम थे, भरे नैनों में तिरस्कार अकस्मात् हुयी इस मुलाकात से कुछ चौंक तो गयी, पर सम्हली तुरंत देखा, कुछ धुंधली धुंधली पर सन्मुख तुम्हारे विरक्ति में, होता भ्रम का अंत अश्रुओ को कंठ में अटकाए बड़े भोलेपन से मैं मुस्काई तुम्हारी मंगल कामना और कैसे हो? बस देखने थी आयी तुमने न पूछा, हाल फिर पलट कर हमारा और हँसते हुए, विदा परायों सा किया हम भी चल दिए, ठोकरें मारते कंकड़ो को कहो? मैं न कहती थी? अब यकीं हुआ ?
अपने पत्ते वो जिगर के पास रखती है पर तेरी नज़रो में एक्के भांप लेती है खोलना एक राज़ को , एक राज़ से बच सका है कौन, इस अंदाज़ से कुछ ख़ास न होकर, वो बेहद ख़ास होती है आम सी बनकर, यूँ क़त्ले आम करती है तुम सोचते हो, इश्क की गलियों में खो गए हक़ीक़त है की, हुश्न की कठपुतली हो गए अब दुआ नहीं ,दवा नहीं, हो न वक़्त मेहरबां बस सुलगते रहो, की बड़ा सख़्त दिलरुबा चुभता भी है , डसता भी है पर छूटता नहीं मामला बड़ा संगीन , हौसला टूटता नहीं धड़कनों को दिल से ,भला अब गैर क्या करे ये इश्क़ की आंधी है, ख़ुदा ख़ैर अब करे ख़ुदा ख़ैर अब करे
उन्मुक्त एक विहंग देखता है बैठ कर पेड़ की उचाईयां पर्वतों का सफ़र घूँट भर की बारिशें और भूख भर दाने यथेष्ठ है इनके पंखो को फड़फड़ाने घोसलों का क्या है हर आंधीयों  में बिखर जायेंगे हम तो चूमने बुलंदिया बादलों में दूर, बड़ी दूर जायेंगे
हमको समझाने एक दिन कई दोस्त आये थे मेरी खामियों की लिस्ट फेहिरस्त, लाये थे कुछ ने दी हिदायत कुछ ने सलाह दी कुछ ने धमकी सीधी शिकायत बेपनाह की मेरे सारे गुनाहों को एक एक, याद दिलाया मेरे उड़ते चेहरे का रंग कोई भांप न पाया जब चले गए तो झट से मैंने सांकल लगायी कितनी, कितनी तनहा थी सोच कर खुद पर हंसी आयी ये दोस्त कहाँ, ये आये थे झूठी रश्मों के चौकीदार नंगी खड़ी थी मेरे सामने हम रिश्तों की दरार फट रहा थे कलेजा पर एक तसल्ली थी सच साथ मेरे था और मैं सच में, अकेली थी
Sing a song of courage  for the world, everywhere  May we all find light  In this moment of despair  Let’s Gather up kindness  And bundle in one intuition  Send it out to heal  In a powerful motion  Offer one listening ear  And a voice that comforts  Love and compassion wins  When nothing else works  Let’s drop being this  And stop being that  Just be simple human  Who cares about  Times of Fear and doubts  Will be finally behind  The spring will be here   flowers will bloom each time  The worse will be over  And the sun will shine  United we will stand  Through another night 

Guilt

It has been a while Since I counted on you The anger and complaints The unnecessary things said Meant nothing, were nothing Were all after the facts The tears were shed The frustrations vent The charm faded Accepted the dent But yes, you saw nothing You knew nothing It was changing, bit by bit Now I am stuck Showing you, the past Walking you through My pain, revisiting every time All the fears, I live through All this while, were just mine Yes, I am guilty I kept painting pictures I kept covering up Busy reading scriptures I don’t know why I keep doing the same The canvas is ugly And so is my shame Forgive me, forgive me Because guilty I am Not loving, yet saying Straightening pictures in frame
मुहब्बत भी तो कैद है है जिंदगी भी ज़ंज़ीर हैं ख्वाहिशे बेड़िया है दम घोंटता ज़मीर शुकूं भी तुम ,जुनूं भी तुम तुम्ही पर और परवाज़ भी तुम दुआ तुम्ही क़हर तुम्ही ख़ामोशी, आवाज़ भी तुम हो भी, और नहीं भी जो पल छुआ था, गए कहाँ? अनकही बातें, भींगी यादें बस ये मैं, ये मेरा जहाँ
प्यास गले में रुकी रहे जीने को इतना काफ़ी है एक घूँट में कहीं बुझा दे बड़ा बेरहम साकी है पीकर हम तेरी आँखों से बेसुध बहके डोलेंगे कही गिर गए जो बाहों में राज़ अनकहे खोलेंगे इश्क़ सलामत रहे भले ये धीरे धीरे क़तल करे जिस्म ख़ाक पर रूहें अपनी तरन्नुमों में वसल करे
हमसे भुलाई न गयी उनसे बेवफ़ाई न गयी बात तो शर्तों की थी दोनों से निभाई न गयी तय था की न वादे न होंगे दिलों के सौदे जानकार भी मिट गए हम उनके सारे इरादे मैं एक ऐसी माशूका जिसका न आशिक़ कहीं खुद शम्मा और पारवाने न जली, तो बुझी भी नहीं
मुहब्बत न सही , ख़ैरियत तो पूछ ही सकते थे क़रीबी भले न सही, पर तकल्लुफ़ के तो रिश्ते थे
हमें आती है तो हमने की हमारा हक़ था तो मांगी थी इज़ाज़त न तुम्हे आयी न तुमने दी रह गयी अधूरी अरे क्या? वही मुहब्बत वही इबादत
बेवफ़ा तेरे पते पर गुलों के काफ़िले भेजे है क्युकी हमें भी तो हमारी वफ़ा का गुरुर है ... अब क्या कहे हमारे इश्क़ से हमारे सारे शेर भी कमब्खत अधूरे से हैं
तन्हाई का आलम है अब ख़ामोशियों का शोर तू है नहीं, कहीं नहीं फिर भी तुम्ही हर ओर ये बेपनाह चाहत मेरी यु ही घुटती है सीने में जो तुझको सौंप दूँ, साजन सांस आये, जीने में मुहब्बत है मुहब्बत है मुहब्बत है, सुना के नहीं? तुम्हे अब भी शिक़ायत है शिक़ायत क्यों? पता ही नहीं बस एक बार, चले आओ पटरी पे साथ मेरे चलने कदम जो डगमगायेंगे, हसेंगे गिर के सम्हलने में निगाहों से निगाहों का सफर तय कर के, निगाहों में उंगलिया रस्ते भूले हो सो जायें , हम जो बाहों में हो झूम कर बारिश बिजलियां चमके सारी रात न तुम बोलो, न हम बोले पर खत्म न ही हमारी बात

लाश अपने ख्वाब की

इक मोड़ पर जिंदगी मिली और फिर खो सी गयी लेकिन मिले थे तो, नजरें भी मिली थी और धड़का था ये दिल, कुछ जोर से चौंक उठी थी दिशाए, कांप उठे थे ऊंघते से ख्वाब, उसके शोर से यूं लगा था, अब कहाँ जायेंगे, क्यों जायेंगे सबकुछ छोड़कर, इस बला के खूबसूरत मोड़ से जिंदगी है , बेवफा , वो रूठ करके बढ़ गया भूल कर के वादे, मेरा इश्क़ शूली चढ़ गया अब भी क्यों, यादें टपकती आती है तेज़ाब सी हम तो घसीटे जा रहे थे, लाश अपने ख्वाब की

पानीपत की तलवार

कितने बरस हो गए होंगे इस बात को? बहुत सारे. ऑफिस के क्यूब से आवाज सुनी थी उसकी. कांफ्रेंस कॉल के बाद तुम आस पास आओगे और बात करोगे, उम्मीद तो नहीं थी. मुझसे तो तब भी न मिलने आये थे तुम. गप्पें तो तुम्हे राज से लगानी होती थी. फिर भी, मैं ही आ गयी थी उठकर तुम्हारी बातें सुनने. वही तो है सारे फसाद की जड़. बातों का मोह. उससे ज्यादा और उससे कम , कुछ नहीं जानती मैं. खड़े हुए चुपचाप बहुत देर सुनी तो थी मोटोरोला और डिज़ाइन आर्किटेक्चर की बाते. तभी अनायास ही पूछ लिया था धरा ने. व्योम , कहाँ से हो? पानीपत. पानीपत की तीसरी लड़ाई? हाँ, पानीपत के लोग दिलों से ज्यादा हड्डियों के टूटने से जाने जाते हैं. कहा तो ठिठोली में था, लेकिन बात कुछ और ही हो गयी. अब तो माज़रा ये है की गिनती ही नहीं रख पाती की कितने राउंड हो गए है हमारे इस लम्बे कोल्ड वॉर को. दिल तो टूटा समझ कर तसल्ली कर  लूँ या अभी भी तुम्हारे बयालीस गानो की फेहरिश्त लिस्ट को रिपीट पर छोड़ दूँ? पल, दिन, हफ्ते, महीने और साल.... जैसे टिक टिक करते निकले जा रहे हैं और मेरी सुईयां वही की वही अटकी पड़ी हैं. घड़ी की सुई तो फिर भी दिन में दो बार मिल जा
हथेलियों की लकीरो में जब भी हिना भरती हूँ मैं अपने लबालब भरे हुए दिल पे हाथ रखती हूँ मैं एक बूँद भी तेरे इश्क़ की छलक न जाये आँखों से उड़ न जाये तेरी खुशबु इन आती जाती सांसो से क्या दिल मुझको समझाए और मैं क्या इसको समझाऊँ तेरे रंग में रंगी सांवरे सारे जग पे , मैं वारी जाऊं